Gokshura: गोखरू के फायदे और उपयोग
गोक्षुरा (Tribulus Terrestris, Land caltrops, Puncture vine) भारत में सभी प्रदेशों में पाये जाने वाला पौधा है। यह जमीन पर फैलने वाला पौधा होता है, जो हर जगह पाया जाता है। वर्षा के आरम्भ में ही यह पौधा जंगलों, खेतों के आसपास के उग आता है। गोखरू का फल बड़ा और छोटा दो प्रकार का होता है। । दोनों के फूल पीले और सफेद रंग के होते हैं। गोखरू के पत्ते भी सफेद होते हैं। गोक्षुरा के फल के चारों कोनों पर एक-एक कांटा होता है। छोटे गोखरू का पेड़ छत्तेदार होता है। गोक्षुरा के पत्ते चने के पत्तों के समान होते हैं। इसके फल में 6 कांटे पाये जाते हैं। कहीं कहीं लोग इसके बीजों का आटा बनाकर खाते हैं।
गोखरू छोटा और बड़ा दो प्रकार का होता है लेकिन इसके गुणों में समानता होती है। गोखरू की शाखाएं लगभग 90 सेंटीमीटर लंबी होती है जिसमें पत्ते चने के समान होते हैं। हर पत्ती 4 से 7 जोड़ों में पाए जाते हैं। इसकी टहनियों पर रोयें और जगह-जगह पर गाठें होती हैं।
Gokshura गोखरू के फूल पीले रंग के होते है जो सर्दी के मौसम में उगते हैं। इसके कांटे छूरे की तरह तेज होते हैं इसलिए इसे गौक्षुर कहा जाता है। इसके बीजों से सुगंधित तेल निकलता है। इसकी जड़ 10 से 15 सेंटीमीटर लम्बी होती है तथा यह मुलायम, रेशेदार, भूरे रंग की ईख की जड़ जैसी होती है। उत्तर भारत मे, हरियाणा, राजस्थान मे यह बहुत मिलता है। गोखरू का सारा पौधा ही औषधीय क्षमता रखता है । फल व जड़ अलग से भी प्रयुक्त होते हैं।
Gokshura गोखरू के फायदे
- गोखरू की प्रकृति गर्म होती है। यह शरीर को ताकत देता है , नाभि के नीचे के भाग की सूजन को कम करता है , वीर्य की वृद्धि करता है, कमजोर पुरुषों व महिलाओं के लिए एक टॉनिक की तरह भी है।
- यह स्वादिष्ट होता है। यह पेशाब से सम्बंधित परेशानी तथा पेशाब करने पर होने वाले जलन को दूर करता है, पथरी को नष्ट करता है, और जलन को शान्त करने में भी असरदार है.
- प्रमेह (वीर्य विकार), श्वांस, खांसी, हृदय रोग, बवासीर तथा त्रिदोष (वात, कफ और पित्त) को नष्ट करने वाला होता है। तथा यह मासिकधर्म को चालू करता है।
- यह दशमूलारिष्ट में प्रयुक्त होने वाला एक द्रव्य भी है । यह नपुंसकता तथा निवारण तथा बार-बार होने वाले गर्भपात में भी सफलता से प्रयुक्त होता है ।
- गोखरू सभी प्रकार के गुर्दें के रोगों को ठीक करने में प्रभावशाली औषधि है। यह औषधि मूत्र की मात्रा को बढ़ाकर पथरी को कुछ ही हफ्तों में टुकड़े-टुकड़े करके बाहर निकाल देती है।
- गर्भाशय को शुद्ध करता है तथा वन्ध्यत्व को मिटाता है । इस प्रकार यह प्रजनन अंगों के लिए एक प्रकार की शोधक, बलवर्धक औषधि है ।
गोक्षुरा (Tribulus Terrestris ) का प्रयोग कैसे करे ।
इसके फल का चूर्ण 3 से 6 ग्राम, दिन में 2 या 3 बार । पंचांग क्क्वाथ- 50 से 100 मिली लीटर ।
पथरी रोग में गोखरू के फलों का चूर्ण शहद के साथ 3 ग्राम की मात्रा में सुबह शाम दिया जाता है । मूत्र के साथ यदि रक्त स्राव भी हो तो गोक्षुर चूर्ण को दूध में उबाल कर मिश्री के साथ पिलाते हैं ।
सुजाक रोग (गनोरिया) में गोक्षुर को घंटे पानी में भिगोकर और उसे अच्छी तरह छानकर दिन में चार बार 5-5 ग्राम की मात्रा में देते हैं । किसी भी कारण से यदि पेशाब की जलन हो तो गोखरु के फल और पत्तों का रस 20 से 50 मिलीलीटर दिन में दो-तीन बार पिलाने से वह तुरंत मिटती है । प्रमेह शुक्रमेह में गोखरू चूर्ण को 5 से 6 ग्राम मिश्री के साथ दो बार देते हैं । तुरंत लाभ मिलता है ।
मूत्र रोग संबंधी सभी शिकायतों यथा प्रोस्टेट ग्रंथि बढ़ने से पेशाब का रुक-रुक कर आना, पेशाब का अपने आप निकलना (युरीनरी इनकाण्टीनेन्स), नपुंसकता, मूत्राशय की पुरानी सूजन आदि में गोखरू 10 ग्राम, जल 150 ग्राम, दूध 250 ग्राम को पकाकर आधा रह जाने पर छानकर नित्य पिलाने से मूत्र मार्ग की सारी विकृतियाँ दूर होती हैं । प्रदर में, अतिरिक्त स्राव में, स्री जनन अंगों के सामान्य संक्रमणों में गोखरू एक प्रति संक्रामक का काम करता है । स्री रोगों के लिए 15 ग्राम चूर्ण नित्य घी व मिश्री के साथ देते हैं । गोक्षरू मूत्र पिण्ड को उत्तेजना देता है, वेदना नाशक और बलदायक है । इसका सीधा असर मूत्रेन्द्रिय की श्लेष्म त्वचा पर पड़ता है ।
गोक्षुर चूर्ण प्रोस्टेट बढ़ने से मूत्र मार्ग में आए अवरोध को मिटाता है, उस स्थान विशेष में रक्त संचय को रोकती तथा यूरेथ्रा के द्वारों को उत्तेजित कर मूत्र को निकाल बाहर करता है । बहुसंख्य व्यक्तियों में गोखरू के प्रयोग के बाद ऑपरेशन की आवश्यकता नहीं रह जाती । इसे योग के रूप न देकर अकेले अनुपान भेद के माध्यम से ही दिया जाए, यही उचित है, ऐसा वैज्ञानिकों का व सारे अध्ययनों का अभिमत है ।
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इसका सेवन आप दवा के रूप में या सब्जी के रूप में भी कर सकते हैं। गोखरू के फल का चूर्ण 3 से 6 ग्राम की मात्रा में दिन में 2 या 3 बार सेवन कर सकते हैं। इसका काढ़ा 50 से 100 मिलीलीटर तक सेवन कर सकते हैं। गोखरू की सब्जी तबियत को नर्म करती है, शरीर में खून की वृद्धि करती है और उसके दोषों को दूर करती है। यह पेशाब की रुकावट को दूर करती है तथा मासिकधर्म को शुरू करती है। सूजाक और पेशाब की जलन को दूर करने के लिए यह लाभकारी है।
होम्योपैथी में श्री विलियम बोरिक का मत प्रामाणिक माना जाता है । विशेषकर वनौषधियों के विषय में वे लिखते हैं कि मूत्र मार्ग में अवरोध, वीर्यपात, प्रोस्टेट ग्रंथि की सूजन व अन्य यौन रोगों में गोखरू का टिंक्चर 10 से 20 बूंद दिन में तीन बार देने से तुरंत लाभ होता है ।
आचार्य चरक ने गोक्षुर को मूत्र विरेचन द्रव्यों में प्रधान मानते हुए लिखा है-गोक्षुर को मूत्रकृच्छानिलहराणाम् अर्थात् यह मूत्र कृच्छ (डिसयूरिया) विसर्जन के समय होने वाले कष्ट में उपयोगी एक महत्त्वपूर्ण औषधि है । आचार्य सुश्रुत ने लघुपंचकमूल, कण्टक पंचमूल गणों में गोखरू का उल्लेख किया है । अश्मरी भेदन (पथरी को तोड़ना, मूत्र मार्ग से ही बाहर निकाल देना) हेतु भी इसे उपयोगी माना है ।
श्री भाव मिश्र गोक्षुर को मूत्राशय का शोधन करने वाला, अश्मरी भेदक बताते हैं व लिखते हैं कि पेट के समस्त रोगों की गोखरू सर्वश्रेष्ठ दवा है । वनौषधि चन्द्रोदय के विद्वान् लेखक के अनुसार गोक्षरू मूत्र पिण्ड को उत्तेजना देता है, वेदना नाशक और बलदायक है ।
इसका सीधा असर मूत्रेन्द्रिय की श्लेष्म त्वचा पर पड़ता है । सुजाक रोग और वस्तिशोथ (पेल्विक इन्फ्लेमेशन) में भी गोखरू तुरंत अपना प्रभाव दिखाता है ।
श्री नादकर्णी अपने ग्रंथ मटेरिया मेडिका में लिखते हैं-गोक्षुर का सारा पौधा ही मूत्रल शोथ निवारक है । इसके मूत्रल गुण का कारण इसमें प्रचुर मात्रा में विद्यमान नाइट्रेट और उत्त्पत तेल है । इसके काण्ड में कषाय कारक घटक होते हैं और ये मूत्र संस्थान की श्लेष्मा झिल्ली पर तीव्र प्रभाव डालते हैं ।
सावधानी
गोक्षुरा (Tribulus Terrestris) का अधिक मात्रा में सेवन ठण्डे स्वभाव के व्यक्तियों के लिए हानिकारक हो सकता है। गोखरू का अधिक मात्रा का सेवन करने से प्लीहा और गुर्दों को हानि पहुंचती है और कफजन्य रोगों की वृद्धि होती है।
गोखरू की सब्जी का अधिक मात्रा में सेवन प्लीहा (तिल्ली) के लिए हानिकारक हो सकता है।
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